
8 जुलाई 2025, मंगलवार: भारत की सनातन परंपरा में गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।
गुरु पूर्णिमा, वह पावन दिन है जब शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण और कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
यह पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास
गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
यह दिन विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास को समर्पित होता है, जिन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर व्यवस्थित किया और महाभारत की रचना की।
इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
वेदव्यास को भारत के पहले और सबसे महान गुरुओं में गिना जाता है।
उनके योगदान से ही आज हम वेद, पुराण, महाभारत और भगवद गीता जैसे ग्रंथों तक पहुंच पाए हैं।
गुरु का स्थान: ईश्वर से भी ऊपर क्यों?
हिंदू संस्कृति में कहा गया है:
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥”
इस श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक हैं।
गुरु ही वह माध्यम हैं जो हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मोह से मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
गुरु पूर्णिमा 2025 की तिथि व मुहूर्त
- तिथि: 8 जुलाई 2025 (मंगलवार)
- पूर्णिमा आरंभ: 7 जुलाई रात 10:12 बजे
- पूर्णिमा समाप्त: 8 जुलाई रात 8:34 बजे
- पूजन मुहूर्त: सुबह 6:00 से दोपहर 12:00 तक उत्तम समय
कैसे मनाएं गुरु पूर्णिमा?
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गुरु या उनके चित्र पर पुष्प, चंदन, धूप-दीप अर्पित करें।
- ‘गुरु स्तोत्र’ या ‘गुरु गीता’ का पाठ करें।
- गुरु को कोई भेंट (वस्त्र, पुस्तक, भोजन आदि) दें।
- यदि गुरु सशरीर उपस्थित न हों, तो मन से ध्यान कर आभार व्यक्त करें।
आधुनिक युग में गुरु की भूमिका
आज के डिजिटल और व्यावसायिक युग में गुरु का स्वरूप बदल गया है, लेकिन उसका महत्त्व कम नहीं हुआ है।
- एक शिक्षक स्कूल में ज्ञान देता है
- माता-पिता जीवन का पहला गुरु होते हैं
- आध्यात्मिक गुरु जीवन के उद्देश्य से परिचित कराते हैं
- एक अच्छा मार्गदर्शक जीवन के कठिन मोड़ों पर संभालता है
इसलिए, हर वह व्यक्ति जो हमारे जीवन को सही दिशा देता है, वह गुरु कहलाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष दिन
गुरु पूर्णिमा के दिन योगी, साधक, और आध्यात्मिक पथिक ध्यान और साधना करते हैं।
सद्गुरु, श्री श्री रविशंकर, ओशो और रामकृष्ण परमहंस जैसे महान संतों ने गुरु पूर्णिमा को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्ति का दिवस कहा है।
यह दिन आत्मचिंतन, आत्मसमीक्षा और आत्मपरिष्कार का भी है।
विदेशों में भी मनाया जा रहा है गुरु पूर्णिमा
अब यह पर्व सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है।
अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में बसे भारतीय समुदाय भी बड़े उत्साह से गुरु पूर्णिमा का आयोजन करते हैं।
योग केंद्रों, ध्यान शिविरों और सनातन संस्कृति से जुड़े संस्थानों में यह दिन मनाया जाता है।
निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन के उस संबंध का उत्सव है जो शिष्य और गुरु के बीच होता है।
यह हमें याद दिलाता है कि सफलता, शांति और मोक्ष तक की राह अकेले नहीं तय होती — बल्कि किसी मार्गदर्शक की जरूरत होती है।
इस गुरु पूर्णिमा पर आइए, हम सभी उन गुरुओं को नमन करें जिन्होंने हमें शून्य से शिखर तक पहुंचाया।